गुस्ताखी माफ़! महंगाई इतनी बढ़ी कि 100 में नहीं, अब 112 में आती है पुलिस!

अजमल शाह
अजमल शाह

100 नंबर गया… अब 112 डायल करिए, लेकिन Balance Check कर लीजिए! एक ज़माना था जब किसी भी खतरे में लोग बोलते थे – “जल्दी से 100 नंबर लगाओ!”

अब वही लोग कहते हैं – “भाई, 112 ही लगाना, 100 तो महंगाई में फेल हो गया!”

लगता है जैसे इमरजेंसी नंबर भी इस देश की मंहगाई को झेल नहीं पाया और खुद का अपग्रेडेशन करवा लिया।

प्याज़ इतना महंगा कि काटो तो आँखों से आँसू नहीं, EMI निकलती है!

महंगाई का लेवल अब इतना “Pro Max” हो गया है कि ₹100 की सब्ज़ी में चार पत्ते और एक उम्मीद आती है। ₹40 वाला दूध अब बच्चों को लगता है — “प्रीमियम हेल्थ ड्रिंक” और प्याज़? अब वो सब्ज़ी नहीं, Emotional Trigger बन चुका है। “Pyaaz ka rate सुनकर लोग अब शादी में दो बार सोचते हैं – बारात आए या ना आए!”

बिजली का बिल देखकर इंसान खुद से पूछता है – “क्या मैंने चाँद पर घर ले लिया?”

आपने AC चलाया 6 घंटे के लिए, बिजली विभाग ने बिल भेजा 6 हज़ार का। अब इंसान खुद सोचता है – “क्या मैं घर में बिजली नहीं, सौरमंडल चला रहा था?”

लोगों ने तो बल्ब जलाना भी बंद कर दिया है — अब चाँदनी रात में बैठकर सोलर पॉएट्री लिखी जा रही है।

पेट्रोल इतना महंगा कि लोग अब पैदल चलकर फिटनेस को राष्ट्रधर्म मानने लगे हैं

“जैसे ही पेट्रोल ₹120 हुआ, भारत देश ‘Health Conscious’ बन गया!”

अब दोस्त कहता है – “चलो यार, पैदल ही चलते हैं, पेट्रोल तो विदेशी साजिश लगती है!”

Bikes और Scooters अब शोपीस बन चुके हैं – बस Diwali की सफाई में बाहर आते हैं।

आलू-टमाटर भी अब VIP हैं, आम आदमी तो पुराने Memes बन गया

आप जानते हो Inflation Serious है, जब आपकी मम्मी टमाटर की सब्ज़ी में **टमाटर की फोटो दिखाकर कहती हैं – “देख बेटा, यही था उसमें!”**

पिछले हफ्ते आलू की सब्ज़ी बनी थी, लेकिन आलू ग़ायब था। अब घर में सब्ज़ी नहीं बनती — सस्पेंस थ्रिलर बनती है।

पुलिस तो 112 पर आ गई, जनता 404 Error में है

सरकार ने इमरजेंसी नंबर बदल दिए। पुलिस अब 100 से 112 हो गई। लेकिन जनता की समस्या वही की वही FIR दर्ज कराने जाओ — रजिस्टर खाली। शिकायत करो — अधिकारी छुट्टी पर। बच जाओ — भगवान का शुक्र है।

“अब Help लाइन कॉल नहीं होती, Holding Line बन जाती है!”

सब महंगा है, सिर्फ आम आदमी सस्ता हो गया है

सिस्टम को सबसे सस्ता जो मिल रहा है, वो है “आम आदमी का धैर्य” — न कीमत, न रेट, न गारंटी। डॉक्टर की फीस = ₹1500, स्कूल की फीस = ₹2000/month, और आम आदमी की अहमियत? Free में Ignore.

महंगाई में बदल गया देश का नंबरिंग सिस्टम, लेकिन सोच वही पुरानी

सवाल ये नहीं कि पुलिस अब 100 में नहीं आती। सवाल ये है कि जब चोर भाग रहा होता है और कॉल करने वाला सोचता है — “100 या 112… या ट्विटर पर Tag करें?”

तो समझ लीजिए —सिस्टम से ज्यादा मंहगी हो गई है ‘आशा’ की कीमत।

“महंगाई की हालत ऐसी हो गई है कि लोग अब बीवी से पूछते हैं — ‘Emotional Support देना है या Financial?’ क्योंकि दोनों Afford नहीं!”

ला नीना आया नहीं, लेकिन रजाई ढूंढनी शुरू कर दो!

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